दिवाली पर झारखंड में मनता है चित्रों का पर्व सोहराय
दलमा और आसपास के इको सेंसेटिव जोन के गांवों में दिवाली में भी पटाखे नहीं फोड़े जाते। दिवाली के दिन मूलवासियों में सोहराय पर्व मनाने की परंपरा है। ये लोग सोहराय पर्व की तैयारी एक महीने पहले से शुरू कर...
दलमा और आसपास के इको सेंसेटिव जोन के गांवों में दिवाली में भी पटाखे नहीं फोड़े जाते। दिवाली के दिन मूलवासियों में सोहराय पर्व मनाने की परंपरा है। ये लोग सोहराय पर्व की तैयारी एक महीने पहले से शुरू कर देते हैं। अपने घरों की सफाई करते हैं। इसके अलावा घर की दीवारों पर प्राकृतिक रंगों से पारंपरिक भित्ति चित्र बनाकर उसे और भी खूबसूरत बनाते हैं। इस पर्व को हाती लोकन सोहराय कहा जाता है। गांव की महिलाओं को रंग-रोगन और भित्ति कलाकृति बनाने में महारत हासिल है। दलमा सैंक्चूरी में कुल 85 गांव हैं। वन विभाग दलमा के गांवों में हाथियों को भगाने के लिए चिली क्रैकर बांटता है। इसमें अगर कुछ बच जाता है तो उसे लोग दिवाली पर फोड़ लेते हैं। शहर से सटे दलमा में कुल 416 प्रजातियों के चार हजार से अधिक जीव-जंतु हैं। दिवाली को शहरों में फोड़े जाने वाले पटाखों की आवाज से इन जीवों की रात बेचैनी में कटती है। इसे देखते हुए वन विभाग ने इस साल चिली क्रेकर के वितरण को फिलहाल रोक दिया है। बोधन गोराई कहते हैं कि हमारे गांवों में सोहराय मनाने की परंपरा है। हम तो जंगल से अपने जरूरत के मुताबिक ही सूखी लकड़ी भी लेते हैं तो वहां के जानवरों को नुकसान पहुंचाने का सवाल कहां से उठता है।
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