दर्जी
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दर्जी वस्त्र सीने की विशिष्ट योग्यता रखने वाला व्यक्ति होता है। वह व्यक्ति के शरीर की माप के अनुसार कपड़ा सीकर उसे वस्त्र का रूप देता है। रियासतकालीन राजव्यवस्था में दरजी को शासक के कोठार एवं वागा(वस्त्र) विभाग के दरोगा के पद की जिम्मेदारी दी जाती थी। इसकी बदौलत उस दरोगा (दर्जी) को गांव भी पट्टे दिया जाता था।
संदर्भ
[संपादित करें]- ↑ जैन, जे के (1979). मानसिंह री ख्यात. जोधपुर: राजस्थान राज्य प्राच्य विधा प्रतिष्ठान जोधपुर. पृ॰ 21.
दरजी चेलों, नानग मोती जालौर री चाकरी नै भूरै दरजी संवत 1800 रा घेरा में नह रया तरां बेमरजी रहीं। तरै वागा रा कोठार री दरोगाई दरजी चेला ने दीवी।चेलो महाराज कंवार कनै रियो तिण मुद्दे बेमरजी रहीं। तरै कोठार री दरोगाई दरजी नानग मोती नू दीवी।।
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